Best of Munawwar Rana

Munawwar Rana मुनव्वर राणा (1952-2024)

Munawwar Rana’s works are celebrated for their emotional depth and lyrical quality, capturing broad spectrum of human emotions from love to loss of social values. His writings serves as a bridge to connect past with present. In my opinion nobody can match his shayaries about mother. Here are some of those pearls for you.

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई, 
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है।

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।

अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।

एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है,
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना।

तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक,
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी।

तुम्हारे शहर में मय्यत को सब कांधा नहीं देते,
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं।

भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में,
ग़रीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है।

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है,
बहुत ऊँची 'इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है।

मुझे इस शहर की सब लड़कियां आदाब करती हैं,
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top