Rahat Indori राहत इंदौरी (1950-2020)
Coming from strong academic background Rahat Indori was master of spoken words, immersive and interactive performances. His verses are known for their poignant simpicity, lyrical beauty and capturing complex emotions of life. He drew his inspirations form socio-political climate and nuances of human emotions. He advocated for unity and tolerance illustrating his commitment to use his art as vehicle for social change.
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है।
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
बुलाती है मगर जाने का नहीं,
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं,
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर,
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं।
नए किरदार आते जा रहे हैं,
मगर नाटक पुराना चल रहा है।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।
वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा,
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया।
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे,
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले।
हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं,
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं।
सूरज सितारे चाँद मिरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे।
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो,
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे।
मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।